BA Semester-5 Paper-2B History - Socio and Economic History of Medieval India (1200 A.D-1700 A.D) - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.)

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2788
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- मुगल शासन में कृषि संसाधन का वर्णन करते हुए करारोपण के तरीके को समझाइए।

उत्तर -

मुगलकाल में कृषि संसाधन

भारत में मुगलों से पहले की तीन शताब्दियों के मुस्लिम शासन के अंतर्गत आर्थिक स्थितियों में कई मूल परिवर्तन किए गए थे। मुगलों द्वारा इन आर्थिक स्थितियों में कोई आकस्मिक अथवा आमूल परिवर्तन नहीं लाया गया बल्कि उन्होंने एक दृढ़ और केन्द्रोन्मुख साम्राज्य की स्थापना करने के प्रयास में बहुत सारी परिस्थितियों एवं प्रक्रियाओं को संस्थाओं की नियमितता प्रदान की। इसी प्रयास का प्रभाव जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पड़ा और उसका एक रूप हमें तत्कालीन अर्थव्यवस्था में भी देखने को मिलता है। इस समय की आर्थिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषता यह थी कि समाज के बहुत प्रकार के आर्थिक स्वार्थ अपनी आय के कृषि उत्पादन में एक हिस्से के हकदार थे। इनमें समाज के बिल्कुल उच्च स्तर से एकदम निचले स्तर तक के व्यक्ति शामिल थे। इस प्रकार दरबार के प्रमुख राजा और अमीर, छोटे-बड़े जमींदार, विभिन्न प्रकार के काश्तकार आदि सभी का प्रमुख आय स्रोत कृषि ही था। कृषि के संदर्भ में संसाधनों से अर्थ उन साधनों से है जो कृषि उत्पादन की प्रक्रिया में प्रभावी होते थे। कृषि संबंधी संसाधनों में "भूमि" संबंधी बड़ा साधन था। दूसरा साधन "चलित पूँजी" अर्थात् हल, बैल आदि तथा तीसरा तत्व था किसान की कृषि करने की क्षमता और काबिलियत। इस कारण किसान एवं उसका परिवार जो कृषि में संलग्न रहता था वह भी संसाधन का एक महत्वपूर्ण तत्व था, क्योंकि मध्यकाल में खासतौर पर खेती हर एक किसान की कृषि पर आधारित थी। साथ ही भाड़े के श्रमिक और ऐच्छिक पट्टेधारी भी एक तत्व होता था। मुगल काल में कृषि संसाधन निम्न प्रकार थे-

भूमि 

सम्पूर्ण मध्यकाल में कृषि योग्य भूमि भरपूर उपलब्ध थी। सल्तनत काल में प्रति असामी भूमि की गणना करना जरा मुश्किल है, किन्तु मुगलकाल में कुछ क्षेत्रीय अध्ययन इस पर प्रकाश डालते हैं। चूँकि भूमि भरपूर उपलब्ध थी इस कारण यह राज्य की जिम्मेदारी होती थीं किसान भूमि से दूर न जाये। औरंगजेब ने भी आमिलों को हिदायत दी थी कि यदि कोई कृषक भूमि छोड़कर चला गया है तो उसे वापस खेती में संलग्न करना चाहिए। चूँकि कृषि से मिलने वाला कर सल्तनत एवं मुगल काल में शासन की आय का बड़ा स्रोत था, इस कारण छोड़ी गई या अनुपयोगी भूमि को कृषि योग्य बनाने पर शासक बल देते थे, जिससे भूमिकर ज्यादा से ज्यादा मिल सके।

चलित पूँजी

मध्यकाल में बैल एक महत्वपूर्ण चलित पूँजी थी। मध्यकाल में देश में पशुधन भी पर्याप्त था। महाराष्ट्र में ग्रामीण क्षेत्रों में पशुधन की चोरी के कारण कृषि में बाधा आने के प्रमाण हमें प्राप्त होते हैं। बैलों के अलावा हल भी ऐसा संसाधन था जो कृषि की एक महत्वपूर्ण कड़ी थी। कृषक के पास जितने हल उतनी अधिक उसकी कृषि उत्पादन की क्षमता होती थी और ग्राम समुदाय में उतना उसका रुतबा रहता था। अमीर किसानों के अधिकतम नौ हल होने के प्रमाण मिलते हैं, जबकि सामान्य और गरीब किसान के पास बामुश्किल एक या दो हल होते थे। बैलों के अलावा अन्य पशुधन भी कृषि के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। अबुल फजल ने लिखा है कि प्रत्येक काश्तकार को 4 बैल, 2 गायें और 1 भैंस बिना कर दिए रखने की अनुमति थी। यदि पशुधन कम होता था तो कृषि उत्पादन भी कम हो जाता था।

जंगल

जंगलों की सफाई करके कृषि योग्य भूमि में विस्तार मध्यकाल में बड़ा प्रचलित था। कृषि का जितना अधिक विस्तार होता था जंगल उतने संकुचित होते जाते थे। इससे कृषि उत्पादन बढ़ता था और वनोपज में कमी आती थी। जो लोग जंगलों की सफाई करते थे उन्हें इन क्षेत्रों के पट्टे दे दिए जाते थे। बिहार में जंगलों की सफाई के कारण कृषि योग्य भूमि में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई थी। जिसके पास संसाधन होते थे, उसे जमीन में आवंटन में अधिक हिस्सा मिलता था और सामाजिक रुतबा भी। संसाधनों की कमी भिन्न-भिन्न प्रकार की आर्थिक, सामाजिक खाइयों को जन्म देती थी। खेतीहर मजदूर कृषि परावलम्बिता का सबसे बड़ा उदाहरण थे। ऋणग्रस्तता के कारण किसान को कृषि के मामलें में कोई स्वतंत्रता नहीं रहती थी।

धन

ग्रामीण समाज में साहूकारों की स्थिति और रुतबे से यह समझ में आ जाता है कि जिनके पास धन होता था, उनके पास पर्याप्त शक्ति होती थी। ग्रामीण समुदाय के अधिकांश व्यक्ति किसी न किसी तरह साहूकारों पर निर्भर करते थे। अपने धन की ताकत पर साहूकार भूमि और इजारे में वंशानुगत पद प्राप्त कर लेते थे। साहूकार पर ग्रामों के निर्धन वर्ग की निर्भरता अत्यधिक थी, क्योंकि उन्हें धन की आवश्यकता होती थी। इस प्रकार कृषि संसाधनों में पैठ बनाने के लिए धन एक महत्वपूर्ण संसाधन था।

मुगल साम्राज्य की आय और उसके साधन - मुगलकाल में शासकों के साथ साम्राज्य की आय एक समान न होकर सदा घटती-बढ़ती रहती थी। इसके तीन प्रमुख कारण थे-

(1) साम्राज्य की सीमा और क्षेत्रफल में परिवर्तन
(2) करों के परिमाण में अन्तर
(3) करों की संख्या में परिवर्तन।

यद्यपि अकबर और उसके उत्तराधिकारी के दरबारी इतिहास उनके काल की घटनाओं का विस्तृत वर्णन देते हैं, किन्तु उन्होंने न तो विभिन्न करों से होने वाली आय को अलग-अलग बताया है और न विभिन्न वर्षों की अपेक्षित तथा वास्तविक आय के ही आँकड़े दिए हैं। फिर भी उन्होंने जो सूचना दी है उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि अकबर की वार्षिक आय साढ़े तेरह करोड़, शाहजहाँ की साढ़े बीस करोड़ तथा औरंगजेब की साढ़े अड़तीस करोड़ थी। इन आँकड़ों से कम से कम इतना अनुमान लगाया जा सकता है कि तैमूरी सम्राट तत्कालीन जगत के समृद्धतम शासक थे। यह आय अनेक साधनों से होती थी किन्तु भूमिकर उनमें मुख्य था और संभवतः उससे उनकी प्रायः दो तिहाई आय होती थी। आय के विभिन्न साधन निम्नलिखित थे-

(1) जकात - जो केवल मुसलमानों से लिया जाता था और जो उनकी आय का 1/40 होता था। निर्धन लोगों से जकात नहीं माँगा जाता था और उसके विषय में कोई कड़ी जाँच नहीं की जाती थी। इस आय से प्राप्त धन केवल धार्मिक कार्यों तथा सार्वजनिक हित के कार्यों में व्यय किया जा सकता था। साधारणतः इसका उपयोग केवल मुसलमानों के हित में ही किया जाता था।

(2) आयात - कर तथा निर्यात कर यह विदेशों से आने वाली तथा विदेशों को जाने वाली वस्तुओं पर लगाया जाता था। मुसलमानों से साधारणतः वस्तु की मूल्य का 2.5 प्रतिशत तथा हिन्दुओं से 5 प्रतिशत लिया जाता था। सल्तनत काल में यह इसी दर से उगाहा जाता था। अकबर ने इसमें कोई परिवर्तन किया था ऐसा उल्लेख नहीं मिलता। यह समझना चाहिए कि इस कर के संबंध में हिन्दुओं और मुसलमानों में बराबर अंतर रहा। सन् 1667 में औरगजेब ने मुसलमानों को इस कर से मुक्त कर दिया था। परन्तु जब यह शिकायत की गयी कि मुसलमान लोग हिन्दूओं से रिश्वत लेकर उनका सामान अपना कह कर बिना चुंगी दिए निकलवा देते हैं, तब सम्राट ने मुसलमानों से फिर आयात-निर्यात कर लेना आरंभ कर दिया किन्तु यद्यपि हिन्दुओं से 5 प्रतिशत लिया जाता था, मुसलमान केवल 2.5 प्रतिशत ही देते थे। औरंगजेब के समय में एकमात्र सूरत के बंदरगाह से 12 लाख रुपया वार्षिक आय होती थी जो उस समय का श्रेष्ठ बंदरगाह था।

(3) नमक-कर - पंजाब के पहाड़ों और राजपूताना की साँभर झील पर सम्राट का एकाधिकार था। वहाँ के नमक से जो आय होती थी उस पर केवल केंन्द्रीय सरकार का अधिकार रहता था और उनकी बिक्री से भी राज्य को आय होती थी। नील भी इन वस्तुओं में से एक थी।

(4) खनिज पदार्थों पर कर - कुछ खानों पर राज्य का सीधा अधिकार था। अन्य खानों पर आय का 1/5 कर लगाया जाता था। इसे खम्स कहते थे। गड़े हुए धन तथा लूट के सामान में भी जो भाग सरकार को मिलता था उसे भी खम्स कहते थे।

(5) निजी व्यापार - राज्य के अपने अधिकार में 100 से अधिक कारखाने थे। इसमें से अधिकांश राजधानी में केन्द्रित थे। किन्तु अनेक अन्यान्य स्थानों पर भी थे। इन कारखानों में इत्र, सुंदर वस्त्र, शृंगार का सामान, युद्ध-सामग्री, उपहार के योग्य वस्तुएँ, सुंदर फर्नीचर आदि तैयार होते थे। प्रधानतः उनके सामान की खपत राजमहल तथा राजदरबार में होती थी। परन्तु यदि कोई अतिरिक्त सामान बचता तो वह खरीददारों को बेच दिया जाता था। इससे भी राज्य को स्वल्प आय होती थी।

(6) सिक्कों का निर्माण - टकसाल से भी राज्य को कुछ आय होती थी, क्योंकि सिक्कों में कुछ मिलावट रहती थी। परन्तु बहुधा सिक्के ढालने का कार्य सुनारों को ठेके पर दे दिया जाता था इसलिए इस मद से भी अधिक आय न होती रही होगी।

(7) जजिया - सुल्तानों के समय में हिन्दुओं से बराबर जजिया लिया जाता था, केवल अलाउद्दीन के विषय में एक विद्वान ने कहा है कि संभव है उसने इसे माफ कर दिया हो। बाबर और हुमायूँ के समय में यह बराबर लिया जाता था। अकबर के समय में भी सन् 1564 तक यह कर लिया जाता था। परन्तु उस वर्ष में सम्राट ने इसे बंद कर दिया। इसके बाद 115 वर्ष तक बंद रहने के बाद सन् 1679 में औरंगजेब ने इसे फिर लगा दिया और उसने इसकी वसूली के लिए पृथक कर्मचारी नियुक्त किए, किन्तु संभवतः इससे अधिक आय कभी नहीं हुई और देहाती क्षेत्रों से शायद जजिया वसूल करने का साहस नहीं किया गया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद जजिया फिर बंद कर दिया गया और यद्यपि दो एक बार फिर इसको चलाने का उद्योग किया गया, किन्तु राजपूतों, मराठों तथा अन्य हिन्दुओं के विरोध के कारण इसे बन्द कर दिया गया।

(8) संपत्ति की जब्ती - जहाँगीर के समय से यह नियम बना था कि अमीरों के मरने पर उनकी सम्पत्ति पर राज्य का अधिकार होगा, लेकिन इस साधन से भी विशेष आय होने की संभावना नहीं थी क्योंकि अधिकांश अमीर ऋणी होकर मरते थे न कि राजा के लिए सम्पत्ति छोड़कर।

(9) उपहार - वर्ष में अनेक अवसर ऐसे आते थे जब सम्राट को अमीरों द्वारा बहुमूल्य वस्तुएँ भेंट में मिलती थीं। इनके बदले में वह अपेक्षाकृत कम दाम की भेंटे लौटा देता था। इस. विनिमय में भी सम्राट को कुछ आय हो जाती थी।

(10) आंतरिक चुंगियाँ - राज्य के भीतर सड़कों तथा नदियों के उपयोग के लिए भी चुंगी देनी पड़ती थी। माल की बिक्री पर बिक्री कर लगता था। नगरों में भी बाजार में चुँगी ली जाती थी। इन सभी साधनों से प्राप्त होने वाली आय नगण्य नहीं थी। परन्तु वह विशेष परिमाण में नहीं होती थी।

(11) राजाओं से कर प्राप्ति - साम्राज्य के अन्तर्गत अनेक अधीनस्थ राजा और बड़े-बड़े जमींदार तथा साम्राज्य की सीमा पर स्थित अन्य राज्य सम्राट को वार्षिक कर देते थे इससे राज्य की आय होती थी। इसका परिमाण भी थोड़ा ही था, क्योंकि अनेक कर देने वाले राजा केवल सैनिक देते थे।

(12) भूमिकर - राज्य के अंदर की समस्त भूमि का वैधानिक अधिकारी सम्राट को माना जाता था किन्तु व्यवहार में किसी भी किसान को उसके खेतों से अलग नहीं किया जाता था। किन्तु यह कहना अनुचित न होगा कि भूमि का वास्तविक अथवा व्यावहारिक अधिकारी किसान होता था। जो किसान जागीरदारों के अधीन होते थे, वे राजनियमों के अनुसार अपना कर जागीरदार को देते थे। जो भूमि सम्राट के सीधे नियंत्रण में होती थी उसे खालसा कहते थे। और जहाँ से कर वसूलने का काम राज्य के सैनिक कर्मचारियों को दिया जाता था। जागीरदारी तथा खालसा क्षेत्र के किसानों के करों में पहले अंतर रहता था किन्तु सम्राट अकबर के समय से यह अंतर समाप्त हो गया। इन दो प्रकार की भूमियों से प्रायः उपज का 1/3 से लेकर 1/2 तक कर लिया जाता रहा था। इनके अतिरिक्त कुछ भूमि धार्मिक नेताओं, संतों, विद्वानों के गुजारे अथवा धार्मिक संस्थाओं की रक्षा के लिए बिना लगान के दे दी जाती थी। इसे 'सुयूरगुल' कहते थे। कुछ भूमि ऐसी भी थी जिससे प्राचीन परम्परा के अनुसार उपज का केवल 1/10 या 1/20 कर लिया जाता था।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सल्तनतकालीन सामाजिक-आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- सल्तनतकालीन केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में प्रांतीय शासन प्रणाली का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- सल्तनत के सैन्य-संगठन पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत काल में उलेमा वर्ग की समीक्षा कीजिए।
  7. प्रश्न- सल्तनतकाल में सुल्तान व खलीफा वर्ग के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
  8. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- मुस्लिम राजवंशों के द्रुतगति से परिवर्तन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजतंत्र की विचारधारा स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के स्वरूप की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- सल्तनत काल में 'दीवाने विजारत' की स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  13. प्रश्न- सल्तनत कालीन राजदरबार एवं महल के प्रबन्ध पर एक लघु लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- 'अमीरे हाजिब' कौन था? इसकी पदस्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  15. प्रश्न- जजिया और जकात नामक कर क्या थे?
  16. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में राज्य की आय के प्रमुख स्रोत क्या थे?
  17. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन भू-राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में सुल्तान की पदस्थिति स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन न्याय-व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- 'उलेमा वर्ग' पर एक टिपणी लिखिए।
  21. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों में सल्तनत का विशाल साम्राज्य तथा मुहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक की दुर्बल नीतियाँ प्रमुख थीं। स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- विदेशी आक्रमण और केन्द्रीय शक्ति की दुर्बलता दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बनी। व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- अलाउद्दीन की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ क्या थीं? अलाउद्दीन के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि उसने इन कठिनाइयों से किस प्रकार निजात पाई?
  24. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार व बाजार नियंत्रण नीति का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण विजय का विवरण दीजिए। उसकी दक्षिणी विजय की सफलता के क्या कारण थे?
  26. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  27. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की विजयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- 'खिलजी क्रांति' से क्या समझते हैं? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  30. प्रश्न- खिलजी शासकों के काल में स्थापन्न कला के विकास पर टिपणी लिखिए।
  31. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का एक वीर सैनिक व कुशल सेनानायक के रूप में मूल्याँकन कीजिए।
  32. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की मंगोल नीति की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
  33. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजनीति क्या थी?
  34. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  35. प्रश्न- अलाउद्दीन की हिन्दुओं के प्रति नीति स्पष्ट करते हुए तत्कालीन हिन्दू समाज की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व सुधार नीति के विषय में बताइए।
  37. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का प्रारम्भिक विजय का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की महत्त्वाकांक्षाओं को बताइये।
  39. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधारों का लाभ-हानि के आधार पर विवेचन कीजिये।
  40. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की हिन्दुओं के प्रति नीति का वर्णन कीजिये।
  41. प्रश्न- सूफी विचारधारा क्या है? इसकी प्रमुख शाखाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके भारत में विकास का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों, विशेषताओं और मध्यकालीन भारतीय समाज पर प्रभाव का मूल्याँकन कीजिए।
  43. प्रश्न- मध्यकालीन भारत के सन्दर्भ में भक्ति आन्दोलन को बतलाइये।
  44. प्रश्न- समाज की प्रत्येक बुराई का जीवन्त विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है। विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  46. प्रश्न- “मध्यकालीन युग में जन्मी, मीरा ने काव्य और भक्ति दोनों को नये आयाम दिये" कथन की समीक्षा कीजिये।
  47. प्रश्न- सूफी धर्म का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।
  48. प्रश्न- राष्ट्रीय संगठन की भावना को जागृत करने में सूफी संतों का महत्त्वपूर्ण योगदान है? विश्लेषण कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी मत की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के प्रभाव व परिणामों की विवेचना कीजिए।
  51. प्रश्न- भक्ति साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भक्ति एवं सूफी सन्तों ने किस प्रकार सामाजिक एकता में योगदान दिया?
  54. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के कारण बताइए
  55. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की क्या दशा थी? इस काल की एकमात्र शासिका रजिया सुल्ताना के विषय में बताइये।
  56. प्रश्न- "डोमिगो पेस" द्वारा चित्रित मध्यकाल भारत के विषय में बताइये।
  57. प्रश्न- "मध्ययुग एक तरफ महिलाओं के अधिकारों का पूर्णतया हनन का युग था, वहीं दूसरी ओर कई महिलाओं ने इसी युग में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करायी" कथन की विवेचना कीजिये।
  58. प्रश्न- मुस्लिम काल की शिक्षा व्यवस्था का अवलोकन कीजिये।
  59. प्रश्न- नूरजहाँ के जीवन चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। उसकी जहाँगीर की गृह व विदेशी नीति के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की दशा कैसी थी?
  61. प्रश्न- 1200-1750 के मध्य महिलाओं की स्थिति को बताइये।
  62. प्रश्न- "देवदासी प्रथा" क्या है? व इसका स्वरूप क्या था?
  63. प्रश्न- रजिया के उत्थान और पतन पर एक टिपणी लिखिए।
  64. प्रश्न- मीराबाई पर एक टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- रजिया सुल्तान की कठिनाइयों को बताइये?
  66. प्रश्न- रजिया सुल्तान का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  67. प्रश्न- अक्का महादेवी का वस्त्रों को त्याग देने से क्या आशय था?
  68. प्रश्न- रजिया सुल्तान की प्रशासनिक नीतियों का वर्णन कीजिये?
  69. प्रश्न- मुगलकालीन आइन-ए-दहशाला प्रणाली को विस्तार से समझाइए।
  70. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व का निर्धारण किस प्रकार किया जाता था? विस्तार से समीक्षा कीजिए।
  71. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व वसूली की दर का किस अनुपात में वसूली जाती थी? ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर क्षेत्रवार मूल्यांकन कीजिए।
  72. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व प्रशासन का कालक्रम विस्तार से समझाइए।
  73. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व के अतिरिक्त लागू अन्य करों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान मराठा शासन में राजस्व व्यवस्था की समीक्षा कीजिए।
  75. प्रश्न- शेरशाह की भू-राजस्व प्रणाली का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  76. प्रश्न- मुगल शासन में कृषि संसाधन का वर्णन करते हुए करारोपण के तरीके को समझाइए।
  77. प्रश्न- मुगल शासन के दौरान खुदकाश्त और पाहीकाश्त किसानों के बीच भेद कीजिए।
  78. प्रश्न- मुगलकाल में भूमि अनुदान प्रणाली को समझाइए।
  79. प्रश्न- मुगलकाल में जमींदार के अधिकार और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मुगलकाल में फसलों के प्रकार और आयात-निर्यात पर एक टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- अकबर के भूमि सुधार के क्या प्रभाव हुए? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  82. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व में राहत और रियायतें विषय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- मुगलों के अधीन हुए भारत में विदेशी व्यापार के विस्तार पर एक निबंध लिखिए।
  84. प्रश्न- मुग़ल काल में आंतरिक व्यापार की स्थिति का विस्तृत विश्लेषण कीजिए।
  85. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापारिक मार्गों और यातायात के लिए अपनाए जाने वाले साधनों का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- मुगलकाल में व्यापारी और महाजन की स्थितियों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- 18वीं शताब्दी में मुगल शासकों का यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  88. प्रश्न- मुगलकालीन तटवर्ती और विदेशी व्यापार का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  89. प्रश्न- मुगलकाल में मध्य वर्ग की स्थिति का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  90. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार के प्रति प्रशासन के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  91. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार में दलालों की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  92. प्रश्न- मुगलकालीन भारत की मुद्रा व्यवस्था पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  93. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान बैंकिंग प्रणाली के विकास और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली हुण्डी व्यवस्था को समझाइए।
  95. प्रश्न- मुगलकालीन मुद्रा प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  96. प्रश्न- मुगलकाल में बैंकिंग और बीमा पर प्रकाश डालिये।
  97. प्रश्न- मुगलकाल में सूदखोरी और ब्याज की दर का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  98. प्रश्न- मुगलकालीन औद्योगिक विकास में कारखानों की भूमिका का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- औरंगजेब के समय में उद्योगों के विकास की रूपरेखा का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- मुगलकाल में उद्योगों के विकास के लिए नियुक्त किए गए अधिकारियों के पद और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान कारीगरों की आर्थिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- 18वीं सदी के पूर्वार्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति की व्याख्या कीजिए।
  103. प्रश्न- मुगलकालीन कारखानों का जनसामान्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
  104. प्रश्न- यूरोपियन इतिहासकारों के नजरिए से मुगलकालीन कारीगरों की स्थिति प

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